सफर में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो इधर उधर कई मंजिल है जो चल सको तो चलो बने बनाए हैं सांचे जो ढल सको तो चलो
किसी के वास्ते राहे कहां बदलती है तुम अपने आप को खुद ही बदल सको तो चलो यहां कोई किसी को रास्ता नहीं देता अगर तुम मुझे गिरा कर संभल सको तो चलो सफर में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
यही है जिंदगी कुछ ख्वाब चंद उम्मीदें इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो हर एक सफर को है महफूज रास्तों की तलाश हिफाज तो की रिवायत बदल सको तो चलो
कहीं नहीं कोई सूरज धुआं धुआं फिजा अपने आप से खुद ही बाहर निकल सको तो चलो By Nida Fazli
कवी इस कविता के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि हमारे जीवन में समस्या तो होंगी परिस्थितियां हमारे अनुकूल नहीं होंगी बल्कि विपरीत होंगी लेकिन फिर भी हमें अपने जीवन में इन समस्याओं परिस्थितियों से लड़ कर आगे बढ़ना है हमें रुकना नहीं है तब तक जब तक हम अपने मंजिल तक नहीं पहुंच जाते
अब कवि यह कहना चाहते हैं कि इस संसार में प्रतियोगिता बहुत है यदि आप आगे बढ़ना चाहते हैं जीवन में कुछ करना चाहते बनना चाहते हैं तो आपको इन प्रतियोगिताओं का सामना करना होगा क्योंकि सभी लोग इन प्रतियोगिताओं में प्रतियोगी है और वह भी इन भीड़ में शामिल है तो आपको इन भीड़ से निकलकर जीवन में कुछ अलग करना है
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